श्रीमद्भागवतम में कलियुग का वर्णन:-
❣️राधे 💞 का 💞 कान्हा 💕
कलियुग के प्रबल प्रभाव से धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, शारीरिक बल तथा स्मरणशक्ति दिन प्रतिदिन क्षीण होते जायेंगे। (श्रीमद्भागवतम.१२.२.१)
एकमात्र संपत्ति को ही मनुष्य के उत्तम जन्म, उचित व्यवहार तथा उत्तम गुणों का लक्षण माना जायेगा। कानून तथा न्याय मनुष्य के बल के अनुसार ही लागू होंगे। (श्रीमद्भागवतम १२.२.२)
पुरुष तथा स्त्रियाँ केवल ऊपरी आकर्षण के कारण एकसाथ रहेंगे और व्यापार की सफलता कपट पर निर्भर रहेगी। पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व का निर्णय कामशास्त्र में उनकी निपुणता के अनुसार किया जायेगा और ब्राह्मणत्व जनेऊ पहनने पर निर्भर करेगा। (श्रीमद्भागवतम.१२.२.३)
मनुष्य एक आश्रम को छोड़ कर दूसरे आश्रम को स्वीकार करेंगे। यदि किसी की जीविका उत्तम नही है तो उस व्यक्ति के औचित्य में सन्देह किया जायेगा। जो चिकनी चुपड़ी बातें बनाने में चतुर होगा वह विद्वान् पंडित माना जायेगा। (श्रीमद्भागवतम.१२.२.४)
निर्धन व्यक्ति को असाधु माना जायेगा और दिखावे को गुण मान लिया जायेगा। विवाह मौखिक स्वीकृति के द्वारा व्यवस्थित होगा। (श्रीमद्भागवतम.१२.२.५)
उदर-भरण जीवन का लक्ष्य बन जायेगा। जो व्यक्ति परिवार का पालन-पोषण कर सकता है, वह दक्ष समझा जायेगा। धर्म का अनुसरण मात्र यश के लिए किया जायेगा। (श्रीमद्भागवतम.१२.२.६)
कलियुग में लोगों की बुद्धि नास्तिकता के द्वारा विपथ हो जायेगी। तीनो लोकों के नियन्ता तक भगवान् के चरण-कमलों पर अपना शीश नवाते हैं, किन्तु इस युग के क्षुद्र एवं दुखी लोग ऐसा नही करेंगे (श्रीमद्भागवतम.१२.३.४३)
अन्त में शुकदेव जी कहते हैं: हे राजन! यद्यपि कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है-केवल “हरे कृष्ण महामन्त्र” का कीर्तन करने से मनुष्य भवबन्धन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है। (श्रीमद्भागवतम.१२.३.५१)
हे राजन! सत्ययुगश्रीमद्भागवतम.१२.३.४१ में विष्णु का ध्यान करने से, त्रेता युग में यज्ञ करने से तथा द्वापर युग में भगवान् के चरणकमलों की सेवा करने से जो फल प्राप्त होता है, वही कलियुग में केवल हरे कृष्ण महामंत्र के कीर्तन करके प्राप्त किया जा सकता है (श्रीमद्भागवतम.१२.३.५२)
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ऐसा ही श्लोक विष्णु पुराण (६.२.१७), पद्म पुराण (उत्तर खंड ७२.२५) तथा ब्रह्न्नारदीय पुराण (३८.९७) में भी पाया जाता है। इतना सब होने पर भी कितना सहज मार्ग बताया। हरे कृष्ण महामन्त्र संकीर्तन ।
!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!
!!हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!
सदैव जपिए एवँ प्रसन्न रहिए….