श्रीमद्भगवद्गीता की उत्पत्ति
भगवद्गीता के प्रमुख श्लोक और उनके अर्थ
भगवद्गीता के श्लोक (Bhagavad Gita shlok in Hindi) हमेशा मानव को आध्यात्मिक प्रेरणा देते हैं। इस लेख में भगवद्गीता के प्रमुख श्लोक और उनके अर्थ
भगवद्गीता के श्लोक (Bhagavad Gita shlok in Hindi) हमेशा मानव को आध्यात्मिक प्रेरणा देते हैं। इस लेख में हम लोग (Bhagavad Gita) के चुनिंदा प्रमुख श्लोक (Gita quotes with meaning) और उनके अर्थों को सरल भाषा में समझाने की कोशिश करेंगे। इंटरनेट पर (Bhagavad Gita shlok in Hindi) या (Gita quotes with meaning) जैसे कीवर्ड डालने पर हमें कई आध्यात्मिक उद्धरण (spiritual quotes from Gita) मिलते हैं। यहाँ हम उन अनमोल शिक्षाओं को देखेंगे जो हमारी जीवन यात्रा को मार्गदर्शन देती हैं।
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कर्म करते रहो, फल की चिंता छोड़ दो (भगवद्गीता के श्लोक 2.47)
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ ( भगवद्गीता के श्लोक 2.47)
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हिन्दी अर्थ: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने का है, इसलिए कर्म करते समय फल की इच्छा मत करो; फल की आशा से मोह भी मत रखो, लेकिन कर्म करना छोड़ना भी नहीं
यह श्लोक हमें बताता है कि जीवन में हमें अपना काम बिलकुल ईमानदारी से करना चाहिए और उसके परिणाम को भगवान के हाथ में छोड़ देना चाहिए। जब हम कर्म करते रहते हैं और फल पर भरोसा नहीं करते, तो भय और चिंता से मुक्ति मिलती है। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि कर्म ही हमारा धर्म है, और फल पर निर्भरता हमें बोझिल कर देती है। यदि हम फल की चिंता में पागल हो जाएँ, तो अपने कार्य में मन नहीं लगाता और काम बेकार हो जाते है। दूसरी ओर, यदि हम कर्म करना छोड़ दे, तो कर्महीन हो जाते हैं, जो द्वैध भ्रम है।
इसलिए संतुलन बनाए रखें: पूरे मन से अपना कर्तव्य करें; लेकिन फल की इच्छा छोड़ दें। इससे मन को शांति मिलती है और हमारा आत्मबल बढ़ता है।
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हर युग में होता है अधर्म का अंत, जब भगवान लेते हैं धर्म के लिए अवतार (श्लोक 4.7-4.8)
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । (श्लोक 4.7)
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ 7॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । (श्लोक 4.8)
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥ 8॥
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हिन्दी अर्थ: हे अर्जुन! जब भी संसार में धर्म का पतन होने लगता है और अधर्म बढ़ जाता है, तब-तब मैं स्वयं अवतार लेता हूँ। मैं धर्मात्माओं की रक्षा करने, दुष्टों के विनाश करने और धर्म की पुनर्स्थापना करने हेतु युग-युग में प्रकट होता हूँ।
इस श्लोक से हमें यह संकेत मिलता है कि भले ही दुनिया में अधर्म और दुर्व्यवहार बढ़ जाए, ईश्वर अपनेw भक्तों की रक्षा के लिए हर युग में अवतार रूप लेकर आएंगे । ऐतिहासिक उदाहरण हैं—जैसे राम और कृष्ण के अवतार—जो अत्याचार को रोकने और धर्म की स्थापना के लिए प्रकट हुए। हमें यह विश्वास मिलता है कि कठिन से कठिन समय में भी भगवान अपना कर्तव्य निभायेंगे ।
यह श्लोक प्रेरित करता है जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ेगा और सत्य की राह धुंधली होगी, तब-तब भगवान अवतार लेकर धर्म की स्थापना करेंगे।
यह भगवद् गीता का अमर संदेश हमें सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, हमें सत्य, न्याय और धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए।
क्योंकि अंत में जीत हमेशा धर्म और सत्य की ही होती है।
यह शाश्वत सत्य हमें हर परिस्थिति
में उम्मीद और आत्मबल देता है।
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आत्मा की अमरता: जीवन और मृत्यु का शाश्वत सत्य (श्लोक 2.20)
न जायते म्रियते वा कदाचि न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजः नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥ (श्रीमद्भगवद्गीता, 2.20)
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हिन्दी अर्थ: आत्मा न कभी जन्म लेती है और न ही उसकी मृत्यु होती है। वह अज (जन्मरहित), नित्य (अनन्त), शाश्वत (स्थायी) और पुराण (अनादि) है। शरीर चाहे नष्ट हो जाए, आत्मा कभी नष्ट नहीं होती। यह शाश्वत सत्य जीवन और मृत्यु के रहस्य को उजागर करता है।
यह महान ज्ञान हमें यह समझने में मदद करता है कि हमारा वास्तविक अस्तित्व आत्मा है, न कि यह नश्वर शरीर। आत्मा की अमरता को जानने से मृत्यु का भय धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है और जीवन में स्थिरता तथा आत्मविश्वास बढ़ता है। जब हम यह स्वीकार करते हैं कि आत्मा अविनाशी है, तो जीवन की कठिन परिस्थितियों में भी हमारा मन डगमगाता नहीं।
भक्तिपूर्ण दृष्टिकोण से यह श्लोक आत्मा की दिव्यता से हमें जोड़ता है। जब हम यह महसूस करते हैं कि हम सभी आत्मा रूपी प्राणी हैं, तो हमारे भीतर प्रेम, सहानुभूति और करुणा की भावना उत्पन्न होती है। यह अनुभूति ही मन को संतुलन और शांति की ओर ले जाती है।
अजर-अमर आत्मा की अनुभूति हमें संयम, धैर्य और समभाव के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। यह जीवन को एक आध्यात्मिक दिशा देता है जहाँ आत्मा का बोध ही सच्चा मोक्ष है।
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मन पर नियंत्रण: आत्म-उद्धार का सबसे बड़ा रहस्य (श्लोक 6.5)
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥ (श्रीमद्भगवद्गीता, 6.5)
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हिन्दी अर्थ: अपने मन के बल से अपने को ऊपर उठाओ, और स्वल्प मानसिकता से पतन न होने दो। वास्तव में आत्मा का अपना ही मन मित्र है, और आत्मा का ही मन शत्रु है।
इस श्लोक में बताया गया है कि हमारा मन न तो हमारा मित्र है और न शत्रु—यह निर्भर करता है कि हम उसे कैसे संभालते हैं। अगर हम मन को सकारात्मक विचारों और उत्साह से भर दें, तो हमारा उद्धार हो सकता है। लेकिन मन को नेगेटिव, आलस और संदेह से भरने पर यही मन आत्मा को डुबो सकता है।
उदाहरण के लिए, परीक्षा या काम के समय भय या आलस्य पकड़ ले तो काम बिगड़ सकता है, लेकिन दृढ़ संकल्प और अच्छा मनोबल रखें तो मुश्किल लक्ष्य भी आसान हो जाते हैं। गीता हमें सीख देती है कि आत्मा ही परम स्वभाव है और मन ही आत्मा का द्वंद्वकारी साथी है—इसलिए हमें मन को नियंत्रित करके ही सच्ची उन्नति करनी चाहिए।
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भगवान आपके सब बोझ उठा लेंगे (श्लोक 9.22)
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥ (श्रीमद्भगवद्गीता, 9.22)
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हिन्दी अर्थ: जो भक्त निःस्वार्थ भाव से पूरी निष्ठा के साथ भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं, उनके कल्याण और आवश्यकताओं की ज़िम्मेदारी स्वयं भगवान लेते हैं। श्रीकृष्ण गीता में स्पष्ट रूप से कहते हैं – “मैं अपने भक्तों के योग-क्षेम का भार खुद उठाता हूँ।” इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति तन-मन-धन से ईश्वर की शरण में रहता है, उसकी रक्षा, समृद्धि और सुख-शांति की व्यवस्था स्वयं परमात्मा करते हैं।
इस श्लोक में भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि इस दिव्य वचन का गहरा अर्थ यह है कि हमें केवल सच्चे मन से भक्ति करनी है, बाकी सब भगवान पर छोड़ देना है। जब हम ईश्वर में पूरी आस्था रखते हैं, तब जीवन की परेशानियाँ भी हमें हिला नहीं पातीं। क्योंकि तब हमें यह विश्वास होता है कि कोई दैवी शक्ति हमारे पीछे खड़ी है।
भगवद गीता का यह शाश्वत संदेश हमें सिखाता है कि भक्त की चिंता भगवान की जिम्मेदारी बन जाती है। जिनका मन केवल प्रभु में स्थिर रहता है, उनके लिए ईश्वर स्वयं संकटों में मार्गदर्शक और रक्षक बनते हैं। यह विश्वास हमें न केवल मानसिक शांति देता है, बल्कि कठिन समय में भी आत्मबल और धैर्य की शक्ति प्रदान करता है।
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सच्ची भक्ति की निशानी: दया, क्षमा और समभाव (श्लोक 12.13)
अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च ।
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी ॥ (श्रीमद्भगवद्गीता, 12.13)
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हिन्दी अर्थ: जो व्यक्ति किसी भी प्राणी से द्वेष नहीं करता, सभी के प्रति मित्रता और करुणा रखता है, ममता और अहंकार से रहित होता है, सुख और दुख में समभाव रखता है, और क्षमा की भावना से ओतप्रोत होता है – वह भक्त भगवान को अत्यंत प्रिय होता है।
यह श्लोक सच्चे भक्त की खूबी बताता है। असल भक्ति में अपने अंदर दयालुता, करुणा, और समभाव की भावना होती है। जब हम दूसरों से वैरभाव नहीं रखते, सभी में भगवान का अंश देखते हैं, तभी हम शिवभाव से जुड़े रहते हैं। दया और क्षमा से प्रेम का मार्ग बनता है, और सुख-दुःख में संतुलन जीवन को सहज बनाता है। गीता की यह शिक्षा कहती है कि अहंकार से मुक्त भक्त को परमेश्वर अति प्रिय मानते हैं। जीवन में जब हम इन गुणों को अपनाते हैं—दूसरों के प्रति सहानुभूति, क्षमाशीलता और निष्काम भावना—तो हमारी आध्यात्मिक प्रगति होती है। यह श्लोक हमें प्रेम और सहिष्णुता के महत्व की याद दिलाता है।
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सर्वधर्म त्यागकर पूरी तरह परमात्मा में समर्पित हो जाओ (श्लोक 18.66)
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥ (श्रीमद्भगवद्गीता, 18.66)
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हिन्दी अर्थ: हे अर्जुन! तुम सभी प्रकार के धर्मों (कर्तव्यों, कर्मों, रूढ़ियों) को त्याग कर केवल मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हारे सभी पापों से मुक्ति दिलाऊँगा। इसलिए चिंता मत करो।
यह गीता का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण संदेश है। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं कि हमारी सारी उलझनें और पाप भी इस एक पूर्ण समर्पण से छूट सकती हैं। जब हम अपने अहंकार, स्वेच्छा और मोह को त्यागकर ईश्वर के चरणों में समर्पित हो जाते हैं, तो परमात्मा हमारी रक्षा स्वयं करते हैं। इस श्लोक का आशय है कि यदि जीवन में हम अकेले सही मार्ग चुनने में असमर्थ हैं, तो प्रभु की पूर्ण शरण में आ जाएं; वे हमें मोक्ष और समाधान देंगे। इससे बड़ा साहस और संतोष का उदाहरण कुछ नहीं हो सकता। यह वचन हमारे अंदर आशा जगाता है कि हम कभी अकेले नहीं हैं।
अंततः यह श्लोक हमें स्वयं का बोझ कम करके ईश्वर पर विश्वास रखना सिखाता है।
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इन श्लोकों में भगवद्गीता का सार बसा है—जहां कर्मयोग, आत्मा की अमरता, मन का नियंत्रण, ईश्वर की शरणागति, करुणा और क्षमा की शिक्षा मिलती है। ये आध्यात्मिक उद्धरण (spiritual quotes from Gita) हमें जीवन की गूढ़ दार्शनिक राह दिखाते हैं। यदि हम इन शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारें, तो हर संकट में हमें प्रकाश और शांति का अनुभव होगा। भगवद्गीता के श्लोक हमें बताते हैं कि सच्चा ज्ञान प्रेम और करुणा का मार्ग है, और भगवान हर पल हमारे साथ हैं। अपने कर्तव्य निभाओ, मन को शुद्ध रखो, और परमेश्वर पर आस्था रखो—यही गीता का संदेश है।
अपने जीवन में इसी विश्वास के साथ आगे बढ़िए, आत्मिक बल मिलेगा और आपका जीवन धन्य हो जाएगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1: भगवद्गीता क्यों पढ़नी चाहिए?
उत्तर: क्योंकि यह जीवन के हर पहलू पर मार्गदर्शन देती है — चाहे वह कर्म हो, भक्ति हो, ज्ञान हो या मोक्ष।
Q2: क्या भगवद्गीता आज के समय में भी प्रासंगिक है?
उत्तर: बिल्कुल। गीता के सिद्धांत आज के तनावपूर्ण जीवन में मानसिक शांति और संतुलन पाने में मदद करते हैं।
Q3: भगवद्गीता किसने सुनाई थी?
उत्तर: श्रीकृष्ण ने अर्जुन को महाभारत के युद्ध में भगवद्गीता का उपदेश दिया था।
Q4: भगवद्गीता में कितने अध्याय और श्लोक हैं?
उत्तर: इसमें कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।
Q5: भगवद्गीता से जीवन में क्या लाभ हो सकता है?
उत्तर: मानसिक स्थिरता, आत्मबल, सही निर्णय लेने की शक्ति, और मोक्ष प्राप्ति की दिशा।
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गीता के ज्ञान को अपने जीवन
का दीपक बनाएं — यह प्रकाश कभी मंद नहीं होगा।
निष्कर्ष (Conclusion)
इन श्लोकों में भगवद्गीता का सार समाया है। यह हमें सिखाते हैं:
कर्म करें, फल की चिंता न करें
आत्मा अमर है
मन पर नियंत्रण रखें
ईश्वर में विश्वास और समर्पण रखें
करुणा और क्षमा के साथ जिएं
इन शिक्षाओं को जीवन में अपनाकर हम आध्यात्मिक, मानसिक और सामाजिक रूप से समृद्ध हो सकते हैं। भगवद्गीता का
हर श्लोक एक जीवन-दर्शन है।